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गंभीर पेयजल संकट में शान्तिगिरि करुणा शुद्ध जल एक अनुकरणीय उदाहरण है

“Manju”

पानी की एक बूंद भी अनावश्यक बहानी नहीं चाहिए। जल भगवान का आशीर्वाद है। आप हर बूंद को कैसे खर्च करते हैं यह महत्वपूर्ण है। जल ही जीवन है।

बेंगलुरु शहर में पीने के पानी के लिए हाहाकार की खबर चौंकाने वाली है। साफ पानी के लिए शहर छोड़ना एक डरावना दृश्य है। ऐसे अनुभव हमसे भी दूर नहीं हैं। कहा गया है कि अब अगर एक और विश्व युद्ध हुआ तो वह पीने के पानी को लेकर होगा। भारत समेत कई देश पानी की भारी कमी से जूझ रहे हैं।

जल संसाधन पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। नदियाँ, झरने और तालाब पृथ्वी के बारहमासी जल स्रोत होने चाहिएं। मानव सहित सभी प्राणियों के लिए समान रूप से सुखदायी जल स्रोतों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। यहीं पर शान्तिगिरि के ‘करुणा शुद्ध जल’ का महत्व है।

आश्रम के संस्थापक नवज्योति श्रीकरुणाकरगुरु ने भविष्य में आने वाले जल संकट को देखते हुए अपने शिष्यों को शान्तिगिरि में जल जलाशय तैयार करने के लिए कहा। शान्तिगिरि पहाड़ी और भीषण जल संकट वाला क्षेत्र था। यह महसूस करते हुए कि आने वाले वर्षों में भयंकर सूखा पड़ेगा, गुरु ने भूजल पुनर्भरण का लाभ उठाने के लिए आश्रम परिसर में वर्षा के जल को इकट्ठा करने के लिए कुओं के निर्माण का सुझाव दिया। यह सुनिश्चित करने के लिए कि यहाँ हमेशा प्रचुर मात्रा में पानी रहे, 12 गड्ढ़े बनाए गए। इसके साथ ही गुरु ने कृषि और वृक्षों के संरक्षण को भी प्रोत्साहित किया। परित्यक्त खदानों और तालाबों को साफ किया गया। फिर रिचार्जिंग की प्रक्रिया शुरू हुई।

इसके साथ ही, आश्रम ने ताज़े पानी की मांग को पूरा करने के लिए पहली वर्षा जल संचयन योजना का निर्माण भी किया। गुरु के निर्देशानुसार, आश्रम के सामने अप्रयुक्त खदान को पचास लाख लीटर की क्षमता वाले वर्षा जल संचयन पद्धति में बदल दिया गया। इस परियोजना ने न केवल आश्रम में पानी की कमी को समाप्त किया बल्कि आसपास के क्षेत्रों में भूजल स्तर को रिचार्ज करने में भी मदद की।

शान्तिगिरि आश्रम में जल संसाधन प्रबंधन प्रथाओं ने राज्य में प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन में सामुदायिक भागीदारी को प्रेरित किया।
शान्तिगिरि जल संरक्षण मौजूदा जल स्रोतों के नवीनीकरण और शुद्धिकरण को सुनिश्चित करके स्थानीय स्तर पर सिंचाई और पेयजल आपूर्ति के लिए एक नई जल उपयोग संस्कृति बनाने पर केंद्रित है। जल उपलब्धता एवं उत्पादकता बढ़ाएँ। लोगों में जल संरक्षण और उपयोग की एक नई संस्कृति विकसित करें और भावी पीढ़ियों के लिए जल सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करें। मौजूदा जल संसाधनों के नवीनीकरण, शुद्धिकरण, उपयोग और टिकाऊ प्रबंधन पर भी ज़ोर दिया गया है।

हाल के दिनों में आश्रम की शान्तिमहिमा, ब्रह्मचारी संगम और वी.एस.एन.के. ईकाईयों ने मिलकर आश्रम में जलाशयों की सफाई की। भीषण गर्मी में भी पानी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से आश्रम के नेतृत्व में ऐसी गतिविधियां संचालित की जाती हैं। आने वाले दिनों में भी यह जारी रहेंगी। यह एक मॉडल है।

प्रचुर जल संसाधन होने के बावजूद भी केरल सूखे की चपेट में है। जल और जल संसाधनों की रक्षा करना पृथ्वी पर प्रत्येक व्यक्ति की ज़िम्मेदारी है। हमें इस बात पर ज़ोर देना चाहिए कि जल संरक्षण के विषय में हम सचेत बनें। जल संसाधन कभी भी स्थायी नहीं होते। अगर देखभाल के साथ संरक्षित नहीं किए गए तो ये सभी समय के साथ नष्ट हो जाएंगे। अगर हम दुनिया में पानी की कीमत जानने वाले बन जाएं तो ही इस धरती पर आगे हमारा अस्तित्व संभव हो पाएगा।

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