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संन्यास समभाव से त्याग है – स्वामी गुरुनंद ज्ञाना थापस्वि

“Manju”

पोत्तनकोड: स्वामी गुरुनंद ज्ञानतपस्वी ने कहा कि संन्यास का अर्थ संयम के साथ त्याग करना है । कलियुग या आज के संन्यास का अर्थ समाज की समस्याओं का समाधान ढूंढना है और न कि पर्वत अथवा वन में एकान्त वास।

अभिवन्द्या शिष्यपूजिता कहतीं हैं कि ‘तपस्या’ शब्द बहुत महत्वपूर्ण है, तप ही त्याग है। उस चीज़ को सहर्ष छोड़ना जो कि हमारे पास है त्याग है। आपको अपनी पसंद-नापसंद को एक तरफ छोड़ना होगा। मन और घर के भीतर तप की आवश्यकता है। यह मत सोचो कि यदि तुम साधु बन जाओगे तो अपनी कर्मगति से मुक्त हो जाओगे। गुरु के प्रति अर्पण भाव से कार्य कर के ही जीवन के दोषों को दूर किया जा सकता है। वासनाओं के बहाव में कर्म करने से बचना चाहिए। मनुष्य को बहुत सावधानी से धर्म के आधार पर जीवन जीना चाहिए। अपने परिवार के साथ, समाज, देश एवं पूरे संसार की भलाई की इच्छा से कार्य करना ही यथार्थ धर्म है। गुरुवार (19-10-2023) रात्रि 8 बजे शांतिगिरि आश्रम में संन्यास दीक्षा वार्षिक समारोह से संबंधित सत्संग में मुख्य भाषण देते हुए स्वामी ने यह कहा।

महासचिव कार्यालय के वरिष्ठ महाप्रबंधक (तकनीकी) टी. के. उन्नीकृष्ण प्रसाद ने बैठक का स्वागत किया और शांतिगिरि विश्वसंस्कृति कलारंगम की उप संयोजक बिंदु सुनीलकुमार ने धन्यवाद दिया। जनसेवकपुरम इकाई के बालकृष्ण पिल्लई और करुणापुरम इकाई के बाईजी टी.पी. ने गुरु और आश्रम के साथ अपने अनुभव साझा किये।

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